|
Indian Blacksmith |
भारतीय लोहार
तकनीकी ज्ञान के बाद अक्षर ज्ञान
अक्षर ज्ञान से पहले तकनीकी ज्ञान
मैं लोहार सतीश कुमार शर्मा. लोहार यानी मैं लोहार, कौन हूँ? इस आर्टिकल के माध्यम से जानने की कोशिश, की मैं लोहार कौन हूँ? मैं प्रकृति, मुझमे प्रकृति और मैं प्रकृति में, मैं खोजकर्ता, मैं निर्माणकर्ता, मैं पालनकर्ता, मैं रक्षक, मैं विनाशकारी.......
मैं लोहार: अक्षर से पहले अध्यात्म और विज्ञान का प्रयोग करने वाला पहला मानव जिसने लोहा का खोज किया. मैं शिल्पकार समूह के मूलसमुदाय हूँ. मैं लोहार उच्च स्तरीय कौशल और समदर्शिता का प्रतीक हूँ, मैंने ही दुनिया को लोहा गलाने का ज्ञान दिया. इसी ज्ञान से कालांतर में स्टील बना और इंसानी समाज ने विकास के नए युग में छलांग लगाई. मैं हजारों वर्ष पूर्व सामाजिक आवश्यकताओं और अपेक्षाओं की पूर्ति का सरल और व्यावहारिक समाधान खोजा, जिससे कि लोगों के जीवन को सुधारा जा सका. मैं समाज के समस्याएं हल करने वाले के रूप में भी कई भूमिकाएं निभाता हूँ - खोजकर्ता
लोहार को उच्च स्तरीय कौशल और समदर्शिता के प्रतीक क्यों कहा गया हैं?
मैं लोहार के उपकरण और तकनीकी ज्ञान, विज्ञान और उच्च स्तर के शिल्प कौशल के परिणाम जैसे-
दिल्ली में जंग मुक्त लौह स्तंभ, मध्य प्रदेश में धार लौह स्तंभ, कोनार्क में लोहे का बीम, दिल्ली और थंजावुर गन इत्यादि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं और लोहार अपना काम करते समय सभी को समान दृष्टि से देखता, सबके साथ समान व्यवहार करता, किसी प्रकार का भेदभाव न रखता हैं. अतः मैं लोहार को उच्च स्तरीय कौशल और समदर्शिता के प्रतीक हूँ. समदर्शिता प्रकृति का गुण हैं. अतः मैं प्रकृति, मुझमे प्रकृति और मैं प्रकृति में.
अध्यात्म और विज्ञान का प्रयोग करने वाला पहला मानव लोहार कैसे?
खोज और निर्माण की कौशल विज्ञान को मैंने कैसे सीखा? स्पष्ट हैं प्रारंभ में मानव जीवन यापन को बेहतर बनाने के लिए चिंतन किया, जो अध्यात्म हैं तथा खोज और निर्माण विज्ञान हैं. मैं कोई अवतार नही की एक दिन में मेरे लिए सब कुछ संभव हो सका, इसके लिए मुझे लगातार वर्षो चिंतन-मनन, खोज में लगा रहना पड़ा और वर्षो संघर्ष करना पड़, कई पीढ़ियों द्वारा आगे बढ़ाया गया और आगे बढ़ता रहेगा.
मैं लोहार/लोहार समुदाय के बारे में और अधिक जानें:-
ऐतिहासिक रूप से सिंधु घाटी सभ्यता के बहुत पहले ही उपकरण बनाने के लिए धातु के इस्तेमाल को सिद्ध कर लिया गया होगा. भारत के गांवों में विद्यमान लोहार के तकनीकी के वर्तमान तरीके के संबंध को आज भी देखा जा सकता हैं जो अपने साथ सिंधु घाटी सभ्यता की धरोहर के साथ साथ आ रहे पूर्व प्राचीन लक्षण भी लिए हुए हैं. यह लोहारगिरी के प्रक्रिया ने कृषि क्रांति की प्रक्रिया में कई तरीकों से योगदान दिया है.
लोहार के भट्टी में लोहे को पिघलाने के एक शक्तिशाली साधन के रूप में भी काम करती है. लोहार एक बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति है, जो लोहे के गुणों के विषय में जानता है, जिसे उसे संभालना है वह जानता है कि गर्म करने के किस बिंदु पर भट्ठी में लोहा पिघल जाता है, और जानता है कि कृषि उपकरणों जैसे- छेनी, हथौड़ा, सँड़सी, फल/फार, कुल्हाड़ी, हंसिया, हथौड़ा, कुदाल, खनती, खुरपा, खुरपी, सरिया, सरौता, बाल्टी अनगिनत या ऐसे ही अन्य प्रारंभिक औद्योगिक और औजार बनाने के लिए लोहे को किस तरह से ढाला जाए. इस विधि से बना हुआ हथौड़ा सबसे अधिक शक्तिशाली प्रौद्योगिक औजार रहा हैं, जिसने न सिर्फ भारत को बल्कि संपूर्ण विश्व को सांचे में ढाला.
इस ऐतिहासिक औजार जिसके द्वारा विश्व में औद्योगिक क्रांति हुई की रूपरेखा तैयार करने में भारतीय लोहार का भी अपना हिस्सा है लेकिन वह सूत्र कभी तरीके से स्थापित नहीं किया जा सका. सारे विश्व के साम्यवादी आंदोलन ने हँसिया और हथौड़े का इस्तेमाल अपनी विचारधारा के प्रतीक के रूप में किया. इन दोनों प्रतीकों का इस्तेमाल विश्व के सर्वहारा के सामाजिक रुतबे को बढ़ाने के लिए किया जाता हैं, लेकिन सही आकलन नही किया गया.
लोहारगिरी और कृषि क्रांति
सर्वविदित है हमारे समाज में औद्योगिक क्रांति की जड़े कृषि औजारों में थी, जो लोहार/शिल्पकार द्वारा गढ़े गए थे. कृषि उत्पादन में एक क्रांति परिवर्तन लाने वाला भी यही समुदाय हैं.
लोहार के द्वारा बनाया गया भारतीय जुताई तकनीकी के लिए कृषि उपकरण लोहे की फल/फार कृषि में क्रांति ला दी. लोहे की फल को हल में लगा दिया जाता था, जिससे हल कड़ी मिट्टी को जोत सके और बीजारोपण को संभव कर सके.
लोहे का कुल्हाड़ी - कृषि का विकास के लिए वनों के पेड़ों को काट कर खेती योग भूमि बनाने और जानवरों के शिकार के लिए कुल्हाड़ी बनाये. इस्तेमाल करने वालों की आवश्यकताओं के मुताबिक हमने विभिन्न मॉडलों में कुल्हाड़ी निर्माण की तकनीकी को विकसित किया। जो आज भी हमारे/आपके गांव में सैकड़ों ऐसे मॉडल विद्यमान है.
लोहार ने कुदाल, खनती और पानी खींचने वाला बाल्टीयों जैसे कई अनगिनत लोहे के उपकरण बनाया जो कृषि तकनीकी का एक हिस्सा बने. लेकिन इन सारे उपकरणों में फल/फार प्रमुख उपकरण था जिसने कृषि क्रांति लाई। उनकी उपयोगिता का ध्यान से निरीक्षण कर लोहार इन कृषि तकनीकी उपकरणों की रूपरेखा में विस्तार करते गए, जो इस विभिन्न प्रकार के उपकरणों को आज भी देखा जा सकता हैं. लोहे का खनती - टंकियों और नहरों को खोदने में मुख्य भूमिका अदा किया, जिससे फसलों की सिंचाई हो सके. इन सब औजारों के साथ घर बनाने वाले भी कई औज़ारों को बनाये ताकि सुरक्षित घर बन सकें. निर्माण, सुरक्षा, भोजन.
लोहार के द्वारा अत्यंत क्रांतिकारी योगदान पहिए ने भारतीय परिवहन व्यवस्था में एक क्रांति ला दी. सम्राट अशोक ने बैलगाड़ी के पहिए के द्वारा लाई हुई परिवर्तन क्रांति को स्वीकारा और इसे अपने राज्य के प्रतीक के रूप में अपनाया. जब भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का प्रारूप 22 जुलाई 1947 को अपनाया तो सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का एक चक्र (पहिया) रखा गया इसे अशोक चक्र कहते हैं. जो सारनाथ में अशोक के सिंह स्तंभ पर बने चक्र (पहिया) से लिया गया है. इसमें 24 तीलियां हैं. जिसका अर्थ हैं - सदैव विकास की ओर अग्रसर. जब भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न 26 जनवरी 1950 को अपनाया तो उसमे भी इस चक्र (पहिया) को रखा गया.
शिल्पकार लोहार का घर एक ऐसा सामाजिक संधिस्थल बन गया जहां सारी समुदाय/जातियां आपस में मिल सकती थी और जीवन का प्राण रक्त जो कि कृषि है के ज्ञान पर विमर्श कर सकती थी. जिसे आज भी भारत के गांवों में कई जगह देखा जा सकता हैं. लोहार शिल्पकार समूह के कई अन्य समुदायों के कार्य मे अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं और देता हैं. निष्कर्ष अगर सीधे तौर पर बोले तो लोहारगिरी विज्ञान (Science) ने भारतीय सभ्यता को अपने पैरों पर खड़ा कर दिया.
देश की आजादी की लड़ाई में भारतीय शिल्पकार लोहारों का कुर्बानियां भी कम नहीं. युद्ध के लिए अस्त्र-शस्त्र बनाने वाले भारतीय ‘लोहारों’ के साथ बहुत ही अमानवीय अत्याचार हुए. असंख्य मारे गये तथा शेष कार्य कुशल कारीगरों को यूरोपीय देशों तथा समुद्री टापुओं पर जबरन छोड़ा गया. बर्नियर लिखता है कि ये आर्टिजन्स (ब्लैकस्मिथ) "भारतीय लोहार इतने कट्टर और स्वाभिमानी थे कि उनके द्वारा निर्मित ढाल, कटार, बर्झे और तलवारें अंग्रेजों के छक्के छुड़ा देते थे". सेनानायक बर्टियर के अनुसार उन्होंने तात्याटोपे, झांसी की रानी तथा अन्य योद्धाओं को जो अस्त्र-शस्त्र बनाकर दिये उसके आगे अंग्रेज सेैनिक टिक नहीं पाते थे. इनकी जगह-जगह कार्यशालायें थीं. इनकी एक टोली थी जो योद्धाओ को युद्ध स्थल में शस्त्र आपूर्ति एवं मरम्मत का कार्य करते थे तथा जरूरत पड़ने पर स्वयं लड़ाई लड़ते थे। ये लोग अस्त्र-शस्त्र निर्माण के साथ यु़द्ध कौशल में भी निपुण थे.
भारतीय शिल्पियों का कोई इतिहास नहीं लिखा गया जबकि उनके द्वारा निर्मित दुर्ग, किला, तोप, बन्दूकें, स्तम्भ, शिलालेख, राज भाव आदि के अवशेष इसके चश्मदीद गवाह हैं। स्वतंत्रता समर के संघर्ष में वतन पर न्यौछावर होने वाले अस्त्र-शस्त्र निर्माता हजारों लोहार कारीगर थे, जिनको अंग्रेजों ने फांसी के फन्दों पर लटका दिया था परन्तु उन्होंने विदेशी हुकूमत के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया.
इसी क्रम में ”दि म्यूटिनी“, में प्रवीजिनल सिविल कमिश्नर सर जार्ज केम्वेल ने बड़ी बेवाकी के साथ इस घटनाक्रम का उल्लेख किया है। लिखा, मैं जानता हॅू कि बड़ी बेदर्दी के साथ कत्लेआम किया गया। वास्तविकता यह है कि अंग्रेजों ने वह काम किये हैं जो कत्लेआम से भी भयंकर थे।’’ हैव्वाक की सेना के अधिकारी द्वारा ब्रिटेन भेजे गये पत्र के मुताबिक हमें याद रखना चाहिये कि जिन लोगों को कठोर यातना, देश निष्कासन, फांसी दी गयी वे कोई सशस्त्र बागी नहीं, निरीह नागरिक थे जिन्हें संदेह के आधार पर पकड़ने के बाद कठोर अमानवीय दण्ड दिया गया। इनमें अधिकांश शस्त्र निर्माता ब्लैकस्मिथ (लोहार) थे. रक्षक और विनाशकारी
उपर्युक्त बातों से यह पूरी तरह स्पष्ट हैं कि मैं लोहार (Blacksmith) कौन हूँ? मैं प्रकृति, मुझमे प्रकृति और मैं प्रकृति में, मैं खोजकर्ता, मैं निर्माणकर्ता, मैं पालनकर्ता, मैं रक्षक, मैं विनाशकारी....... यह सिर्फ नाम हैं, कहानी आगे पढ़े. यह आर्टिकल सम्पूर्ण समाज को समर्पित हैं.
मैं लोहार सतीश कुमार शर्मा
जय लोहार, जय विज्ञान, जय जोहार, जय भारत
Very very nice blog....Mr lohar
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंलोहार.भारत WWW.बनाने के लिए
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएं